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त्वामु॒ ते द॑धिरे हव्य॒वाहं॑ दे॒वासो॑ अग्न ऊ॒र्ज आ नपा॑तम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām u te dadhire havyavāhaṁ devāso agna ūrja ā napātam ||

पद पाठ

त्वाम्। ऊँ॒ इति॑। ते। द॒धि॒रे॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। दे॒वासः॑। अ॒ग्ने॒। ऊ॒र्जः। आ। नपा॑तम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:17» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्यार्थी किसके तुल्य किसका सेवन करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) समस्त विद्या से प्रकाशित (ते) आपके (ऊर्जः) पराक्रमयुक्त (देवासः) उत्तम स्वभाववाले विद्यार्थी जन (नपातम्) जिसका गिरना नहीं विद्यमान उस (हव्यवाहम्) होते हुए पदार्थों को पहुँचानेवाले अग्नि के समान (त्वाम्) (उ) तुझे ही (आ, दधिरे) अच्छे प्रकार धारण करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे अग्निविद्या जाननेवाले ऋत्विज् अग्नि की सेवा करते हैं, वैसे ही विद्यार्थी जन अध्यापक की सेवा करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्यार्थिनः कमिव कं सेवेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त ऊर्जो देवासो नपातं हव्यवाहमिव त्वामु आ दधिरे ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (उ) (ते) (दधिरे) दधतु (हव्यवाहम्) यो हव्यानि हुतानि द्रव्याणि वहति तद्वद्वर्त्तमानम् (देवासः) दिव्यस्वभावा विद्यार्थिनः (अग्ने) सकलविद्यया प्रकाशित (ऊर्जः) पराक्रमयुक्ताः (आ) (नपातम्) न विद्यते पातो यस्य तम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - यथाऽग्निविद्या जना ऋत्विजोऽग्निं परिचरन्ति तथैव विद्यार्थिनोऽध्यापकं सेवेरन् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी अग्निविद्या जाणणारे ऋत्विज अग्नीची सेवा करतात तशीच विद्यार्थ्यांनी अध्यापकांची सेवा करावी. ॥ ६ ॥